Sunday, March 17, 2019

किसको है कितनी सजा देने की अधिकार

किसको है कितनी सजा देने की अधिकार



इसके लिए हमे मुख्य रूप से हमे सेक्शन 28 और 29 को समझना होगा।

(i) एक उच्च न्यायालय कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकता है [सेक्शन 28 (1)]।

(ii) एक सत्र न्यायाधीश या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकते हैं; लेकिन ऐसे किसी भी न्यायाधीश द्वारा पारित मौत की सजा उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि के अधीन होगी [सेक्शन 28 (2)]।

(iii) एक सहायक सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को दे सकता है, लेकिन मौत की सजा या आजीवन कारावास या 10 साल से अधिक की अवधि के कारावास की सजा वो नहीं दे सकता [सेक्शन 28 (3)]।
(iv) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत, मौत की सजा या आजीवन कारावास या 7 साल से अधिक के कारावास की सजा को छोड़कर किसी भी सजा को सुना सकती है [सेक्शन 29 (1)]।

(v) प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत 3 साल तक की अवधि के कारावास की सजा एवं 10 हजार रुपये तक के जुर्माने या दोनों तक दे सकती है [सेक्शन 29 (2)]।

(vi) द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत 1 साल तक की अवधि के कारावास की सजा एवं 05 हजार रुपये तक के जुर्माने या दोनों तक दे सकती है [सेक्शन 29 (3)]।

एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (कार्यकारी मजिस्ट्रेट)

एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (कार्यकारी मजिस्ट्रेट)


यह ध्यान रखने वाली बात है कि एग्जीक्यूटिव को दी जाने वाले मजिस्टेरियल शक्ति, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट में निहित होती है।
प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगरीय क्षेत्र में, राज्य सरकार कई व्यक्तियों को कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है, और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जायेगा। [सेक्शन 20 (1)]
राज्य सरकार, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट होने के लिए किसी भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को नियुक्त कर सकती है, और इस तरह के मजिस्ट्रेट के पास इस कोड के तहत या किसी भी अन्य कानून के तहत जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियों होंगी जैसा राज्य सरकार निर्देश दे [सेक्शन 20 (2)]।
राज्य सरकार, एक सब-डिवीज़न के प्रभारी के लिए एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और अवसर की आवश्यकता के अनुसार उसे उस प्रभार से मुक्त कर सकती है; और मजिस्ट्रेट को उस प्रभार के रूप में सब-डिविशनल मजिस्ट्रेट कहा जाएगा [ सेक्शन 20 (4)]।

इसके अलावा कुछ विशिष्ट कार्य अथवा क्षेत्र के लिए एक स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट भी नियुक्त किया जा सकता है, राज्य सरकार द्वारा (सेक्शन 21) ।

राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन, जिला मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं जिनके भीतर कार्यकारी मजिस्ट्रेट उन सभी या किसी भी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, जो उन्हें इस कोड के अंतर्गत मिली है (सेक्शन 22)।

अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के अलावा अन्य सभी कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे, और प्रत्येक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के अलावा) सब-डिवीजन में शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे हालांकि, जिला वे मजिस्ट्रेट के सामान्य नियंत्रण के अधीन हमेशे रहेंगे  (सेक्शन 23)।

जुडिशल मजिस्ट्रेट

जुडिशल मजिस्ट्रेट की स्थिति


उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकते हैं जिनके भीतर धारा 11 (जुडिशल मजिस्ट्रेट) के तहत या धारा 13 (स्पेशल जुडिशल मजिस्ट्रेट) के तहत नियुक्त मजिस्ट्रेट उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं जो उन्हें इस कोड के अंतर्गत मिली है [सेक्शन 14 (1)]।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, समय-समय पर, ऐसे नियम बना सकते हैं या विशेष आदेश दे सकते हैं, जो इस संहिता के अनुरूप हों और अपने अधीन न्यायिक मजिस्ट्रेट के बीच कार्य के वितरण हेतु हों [सेक्शन 15 (2)]।

प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के अधीनस्थ होते हैं; और प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्र न्यायाधीश के सामान्य नियंत्रण के अधीन, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होते हैं [सेक्शन 15 (1)]।

इसके अलावा मेट्रोपोलिटन क्षेत्र के लिए मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ईवम कुछ विशिष्ठ जगहों एवं कार्यों के लिए स्पेशल मजिस्ट्रेट की नियुक्ति का प्रावधान भी यह कोड करता है.

सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट

सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट 


उच्च न्यायालय किसी भी उप-डिवीजन में प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को सब-डिविजनल न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नामित कर सकता है और इस अनुभाग में निर्दिष्ट जिम्मेदारियों से मुक्त कर सकता है जैसा कि अवसर की आवश्यकता होती है।

एडिशनल चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट -

एडिशनल चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट


उच्च न्यायालय प्रथम श्रेणी के किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है, और इस तरह के मजिस्ट्रेट के पास इस कोड के तहत या किसी भी कानून के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियां होंगी।

चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट

चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट

अब हर जिले में उच्च न्यायालय एक सीजेएम की नियुक्ति करता है जो की प्रथम श्रेणी का जुडिशियल मजिस्ट्रेट होगा [सेक्शन 12 (1)]। जुडिशल मजिस्ट्रेट का पद इसलिए आवश्यक है क्यूंकि यह जिले में मजिस्ट्रेसी का प्रमुख होता है। यह दूसरे जुडिशल मजिस्ट्रेट के ऊपर अधिकारिता रखता है।

जुडिशल मजिस्ट्रेट के न्यायालय

जुडिशल मजिस्ट्रेट के न्यायालय


हर जिले में (जो मेट्रोपोलिटन क्षेत्र नहीं है) कितने भी प्रथम श्रेणी अथवा द्वितीय श्रेणी के जुडिशल मजिस्ट्रेट हो सकते हैं, यह निर्णय राज्य सरकार, उच्च न्यायलय के साथ परामर्श में लेगी (सेक्शन 11)। इन दोनों के बीच तालमेल इसलिए जरुरी है क्यूंकि, जहाँ क्षेत्र और वित्तीय उपलब्धता सरकार बेहतर समझती है, वहीँ हर क्षेत्र में अदालत की पहुंच हो यह फैसला उच्च न्यायालय बेहतर कर सकता है। वहीँ इस सभी न्यायालयों में पद सँभालने वालों को यह शक्ति उच्च न्यायलय द्वारा दी जाती है, यानी उनकी नियुक्ति राज्य का उच्च न्यायालय करेगा - सेक्शन 11(2)।
यह नहीं सेक्शन 11 (3) में यह प्रावधान है कि उच्च न्यायालय किसी सिविल जज में यह शक्ति निहित कर सकता है कि वो प्रथम श्रेणी अथवा द्वितीय श्रेणी के जज के तौर पर कार्य करे।

Session court सत्र न्यायालय

सत्र न्यायालय (कोर्ट ऑफ़ सेशन)


हर सेशन डिवीज़न के लिए एक सेशन कोर्ट या सत्र न्यायलय स्थापित होता है। सेक्शन 9 (1), (2) के मुताबिक यह नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। जरुरत पड़ने पर उच्च न्यायालय एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट एडिशनल जज की नियुक्ति कर सकता है। अब यह सभी न्यायाधीश कोर्ट सेशन के रूप में निर्णय सुनायेंगे। यहाँ यह ध्यान रखने वाली बात है कि एडिशनल सेशन जज एवं असिस्टेंट सेशन जज, कोर्ट ऑफ़ सेशन के रूप में कार्य करते हैं लेकिन वे स्वयं कोर्ट ऑफ़ सेशन के स्वतन्त्र इकाई नहीं हैं। वहीँ असिस्टेंट सेशन जज, उस सेशन जज के अधीन होते हैं जिनकी अधिकारिता में वे कार्य करते हैं।

एटीएम कार्ड से पैसा गायब हुआ है तो अपनायें ये क़ानूनी उपाय

◆एटीएम से अवैध लेन-देन एवं धोखाधड़ी

यह पैसा चोरी करने की एक नयी प्रक्रिया है। जिसमें उपभोक्ता के एटीएम कार्ड की जानकारी को एटीएम मशीन में या उस कक्ष में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे की कार्ड डालने वाली जगह पर कार्ड स्कैमर, कीपैड पर छोटा कैमरा आदि लगा के पता किया जाता है। इसके बाद अवैध तरीके से उपभोक्ता की जमा पूंजी को एटीएम से निकाल लिया जाता है।

◆कब, कैसे और कहाँ करें शिकायत

अपराध से पीड़ित व्यक्ति को शिकायत अवश्य दर्ज़ करनी चाहिए। इस प्रकार के मामलों में शिकायत क्रिमिनल एवं सिविल के दोनों प्रारूपों में करायी जा सकती है। क्रिमिनल के प्रारूप में अपराधी को 'सूचना तकनीक अधिनियम २००२' की धारा ६६ C और ६६ D के अंतर्गत अपराधी माना जायेगा। सिविल के प्रारूप में बैंक द्वारा उपभोक्ता के पैसों की कमीपूर्ति की जाएगी। इसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियमावली लागू करके सभी बैंकों को सूचना भी दी गयी है। आऱबीआई के नियम आने के बाद सभी बैंकों की ज़िम्मेदारी अब और बढ़ गयी है। उदाहरण के लिए जैसे पहले 'अवैध लेन-देन' सिद्ध करने का भार उपभोक्ता पर होता था, लेकिन अब यह भार बैंक पर होगा।

◆बैंक में दर्ज़ करें शिकायत
उपभोक्ताओं की शिकायत एवं समस्याओं को सुलझाना बैंक का एक प्रमुख कार्य है। लेकिन साथ ही उपभोक्ता को शिकायत दर्ज करवाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान भी रखना चाहिए, जैसे;

(1) आऱबीआई के नियम के अनुसार ऐसे धोखाधड़ी व अवैध लेन-देन के प्रकरण जहाँ पर बैंक की लापरवाही य कमी पायी जाती है, और या फिर इस प्रकार का उल्लंघन किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जाता है, तब वहाँ पर उपभोक्ता की देयता मतलब लायबिलिटी शून्य होगी। लेकिन इसके लिया पीड़ित उपभोक्ता को बैंक में अपनी शिकायत तीन कार्य दिवस के अंदर दर्ज़ करवानी होगी।

(2) अगर धोखाधड़ी य अवैध लेन-देन उपभोक्ता की लापरवाही के कारण हुआ है, तो लायबिलिटी उपभोक्ता पर तब तक रहेगी जब तक वह अपनी शिकायत बैंक में दर्ज नहीं करा देता। शिकायत दर्ज़ होने के बाद लायबिलिटी बैंक के ऊपर स्थानांतरित हो जाएगी।

(3) अगर उपभोक्ता का पैसा किसी व्यक्ति द्वारा एटीएम से निकाल लिया जाता है, और उपभोक्ता इसकी शिकायत तीन कार्य दिवस के बाद लेकिन सात कार्य दिवस के अंदर दर्ज़ करवाता है, तो उपभोक्ता की लायबिलिटी को सीमित कर दिया जायेगा, जो कि 'एटीएम से निकाले गए पैसे' य 'आरबीआई के नियम द्वारा निर्धारित मूल्य' दोनों में से जो भी रक़म कम होगी उसी के बराबर का पैसा बैंक द्वारा उपभोगता को दिया जायेगा।

(4) अगर उपभोक्ता अपनी शिकायत सात कार्य दिवस के बाद दर्ज करवाता है, तब उसको कितना पैसा बैंक द्वारा दिया जाये यह 'बैंक के बोर्ड की मंजूरी नीति' द्वारा तय किया जायेगा ।

(5) उपभोक्ता अपनी शिकायत उसी बैंक में दर्ज़ कर सकते हैं जिसमे उनका खाता खुला हुआ है, न कि उस बैंक में जिसके एटीएम से अवैध लेन-देन किया गया है।

(6) उपभोक्ता को शिकायत दर्ज़ करने के लिए बैंक द्वारा कई विकल्प दिए जाते हैं, जैसे की उपभोक्ता, सम्बंधित बैंक की वेबसाइट पर जा कर अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज कर सकते हैं। जिसके बाद बैंक उपभोक्ता को एसमएस, ई -मेल य प्रतिउत्तर के द्वारा आगे की कार्यवाही से अवगत कराएगी।

(7)
आरबीआई के नियम के अनुसार देयता धनराशि का भुगतान खाताधारक उपभोक्ता को दस कार्य दिवस के अंदर कर दिया जाये।


◆बैंक के शिकायत न दर्ज़ करने पर

अगर बैंक उपभोक्ता की शिकायत नहीं दर्ज करता है, तब इस स्तिथि में उपभोक्ता बैंक लोकपाल में अपनी शिकायत दर्ज़ करवा सकता है। इसके बाद उपभोक्ता चाहे तो बैंक लोकपाल के आदेश की अपील तीस दिनों के अंदर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के समक्ष कर सकता है। अगर उपभोक्ता अब भी संतुष्ट नहीं है, तो वह उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने के लिए स्वतंत्र है।

◆साइबर सेल में भी दर्ज करें शिकायत

उपभोक्ता अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस की साइबर सेल में दर्ज़ करवा सकता है। इस प्रकार की साइबर सेल लगभग सभी शहरों एवं महानगरों में बनायी जा चुकी हैं। उपभोक्ता अपनी शिकायत देश की किसी भी साइबर सेल में कर सकता है।

Saturday, March 16, 2019

कैसे करें मतदान अगर आप छात्र हैं और दूसरे शहर में रहते हैं ?

यदि कोई छात्र किसी शैक्षिक संस्थान के होस्टल/मेस में रहता है, तो उसके पास अपने मूल स्थान पर अपने माता-पिता के साथ या अध्ययन के स्थान के पते पर खुद को निर्वाचक के रूप में पंजीकृत करने का विकल्प होगा। छात्र द्वारा अपनाए गए पाठ्यक्रम को केंद्रीय / राज्य सरकार / विश्वविद्यालय / डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए और इस पाठ्यक्रम की अवधी 1 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। ऐसे छात्र जो खुद को वहाँ नामांकित करना चाहते हैं जहाँ वो अध्ययन कर रहे हैं तो उन्हें अपने शैक्षिक संस्थान के हेडमास्टर / प्रिंसिपल / डायरेक्टर / रजिस्ट्रार / डीन द्वारा जारी किए गए उचित प्रमाणपत्र को फॉर्म 6 के साथ संलग्न करना होगा।


कब तक करा सकते हैं मतदाता सूची में पंजीकरण ?

चुनाव आयोग आमतौर पर सितंबर से अक्टूबर के महीनों में हर साल मौजूदा मतदाता सूची में संशोधन का आदेश देता है और इस तरह की संशोधित सूची आखिरकार आगामी वर्ष जनवरी के पहले सप्ताह में प्रकाशित किए जाते हैं। उम्मीदवार द्वारा नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि तक मतदाता सूची (आमतौर पर मतदान की तारीख से लगभग 3 सप्ताह पहले) को लगातार अपडेट किया जाता है।
'मतदान' केवल हमारा 'अधिकार' नहीं है परन्तु एक नागरिक के रूप में यह हमारी ज़िम्मेदारी है और हम सभी को गंभीरता के साथ इस ज़िम्मेदारी को पूरा करना चाहिए। हम सभी को मतदान करना चाहिए और साथ ही साथ दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में मतदान एक नागरिक का सबसे मजबूत हथियार है।

मतदान की प्रक्रिया

मतदान की प्रक्रिया

भारत निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार, प्रत्येक मतदाता को अपना नाम मतदाता सूची में पंजीकृत करवाना अनिवार्य है। यदि आपका नाम सूची में दर्ज नहीं है, तो आप मतदान नहीं कर सकते। साथ ही, मतदाताओं के पास एक पहचानपत्र भी होना चाहिए जिसे मतदाता पहचानपत्र (वोटर ID) के रूप में जाना जाता है और मतदाता सूची में पंजीकरण के बाद निर्वाचन आयोग इसे उस व्यक्ति को जारी करता है। यदि आपके पास इनमें से कुछ भी नहीं है, तो आपको वोट देने की अनुमति नहीं दी जाएगी। मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया के बारे में जानने के लिए स्थानीय चुनाव कार्यालय पर जाएं और अपने साथ एक पहचानपत्र ज़रूर रखें। यदि आपके पास पहले से ही ये सब है, तो मतदान ज़रूर करें।

मतदाता सूची में नाम पंजीकरण की प्रक्रिया

अगर आप पहली बार मतदान करेंगे या फिर आपका नाम मतदाता सूची में किसी कारण मौजूद नहीं है तो फिर आप जल्द ही अपना नाम मतदाता सूची में पंजीकृत करवायें। ऐसा करने के लिए किसी व्यक्ति को निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी / सहायक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी के समक्ष निर्धारित फॉर्म 6 भरकर आवेदन देना करना होता है।

आवेदक के पास होना चाहिए :

एक पासपोर्ट आकर का रंगीन फोटो,
निवास प्रमाणपत्र और
जन्म प्रमाणपत्र
इन्हें फॉर्म 6 के साथ संलग्न कर संबंधित दस्तावेज़ों की प्रतियों के साथ आवेदन को संबंधित

निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी/ सहायक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी के समक्ष जमा किया जा सकता है,
या उन्हें डाक द्वारा भेजा जा सकता है
या आपके मतदान क्षेत्र के बूथ स्तर के अधिकारी को सौंपा जा सकता है,
या संबंधित राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कोई दिया जा सकता है
या निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है।
आप फॉर्म 6 को ऑनलाइन भी भर सकते हैं जिसके लिए आपको उपरोक्त दस्तावेज़ों को अप-लोड करना पड़ेगा। फॉर्म 6 को ऑनलाइन भरने के लिए आप इस लिंक पर जाएँ-



https://www.nvsp.in/Forms/Forms/form6